चम्पावत – कचरे से कृति की ओर – चम्पावत में ईको ब्रिक्स से गढ़ा जा रहा पर्यावरणीय नवाचार, प्लास्टिक बोतलों में बंद हो रहा कचरा, बन रही हैं पर्यावरण की ईंटें, जिलाधिकारी ने की सराहना।
➡️ ईको ब्रिक्स जैसे नवाचार पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने में प्रभावी हैं – जिलाधिकारी
➡️ ईको ब्रिक्स मॉडल अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणास्रोत बन सकता है – जिलाधिकारी
➡️ प्रशासन इस अभियान को और सशक्त बनाने हेतु हरसंभव सहयोग प्रदान करेगा – जिलाधिकारी
➡️ समिति अपने अनुभवों और मॉडलों को दस्तावेजीकृत करें, ताकि अन्य सामाजिक संगठनों, पंचायतों व शिक्षण संस्थानों को इससे दिशा मिल सके – जिलाधिकारी
➡️ ऐसे समर्पित सामाजिक संगठन जनपद चम्पावत की पर्यावरणीय चेतना को मजबूती प्रदान करते हैं – जिलाधिकारी
➡️ प्रशासन और समाज के साझा प्रयासों से चम्पावत को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील, नवाचार-प्रेरित क्षेत्र के रूप में विकसित किया जा सकता है – जिलाधिकारी
चम्पावत। जनपद चम्पावत की माँ पूर्णागिरी पर्यावरण संरक्षण समिति द्वारा प्लास्टिक कचरे से उपयोगी निर्माण सामग्री तैयार करने की दिशा में एक अनूठा और व्यवहारिक नवाचार सफलतापूर्वक संचालित किया जा रहा है। समिति की अध्यक्ष दीपा देवी के नेतृत्व में ईको ब्रिक्स तकनीक को अपनाकर न केवल प्लास्टिक अपशिष्ट का समाधान प्रस्तुत किया गया है, बल्कि इससे पर्यावरण संरक्षण और जन-जागरूकता को भी नया आयाम मिला है। जिसकी जनपद चम्पावत के जिलाधिकारी मनीष कुमार ने सराहना करते हुए कहा ऐसे समर्पित सामाजिक संगठन जनपद चम्पावत की पर्यावरणीय चेतना को मजबूती प्रदान करते हैं।
माँ पूर्णागिरि पर्यावरण संरक्षण समिति अध्यक्ष दीपा देवी ने जिला मुख्यालय चम्पावत में जिलाधिकारी मनीष कुमार से भेंट कर समिति की गतिविधियों और नवाचारों की जानकारी साझा की। इस दौरान प्लास्टिक से बनी ईको ब्रिक्स बोतल उन्हें प्रतीकस्वरूप भेंट की गई।जिलाधिकारी मनीष कुमार ने समिति के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा, “ईको ब्रिक्स जैसे नवाचार पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने में प्रभावी हैं और यह मॉडल अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणास्रोत बन सकता है। प्रशासन इस अभियान को और सशक्त बनाने हेतु हरसंभव सहयोग प्रदान करेगा।”
ज्ञात हों कि ईको ब्रिक्स एक सामान्य प्लास्टिक बोतल होती है, जिसे पॉलिथीन, प्लास्टिक रैपर और अन्य गैर-बायोडिग्रेडेबल कचरे से भरकर मजबूती दी जाती है। एक बोतल में औसतन 300 से 350 ग्राम प्लास्टिक कचरा समा सकता है, जिससे यह कचरे को निस्तारित करने के साथ-साथ निर्माण कार्यों में भी उपयोगी हो जाती है। यह नवाचार पर्यावरणीय पुनर्चक्रण का सशक्त उदाहरण बनकर उभरा है।
वर्तमान में टीआरसी, टनकपुर में ईको ब्रिक्स से सोफा चेयर निर्माण कार्य प्रगति पर है, जो यह सिद्ध करता है कि यदि सोच रचनात्मक हो, तो “कचरे से कृति” और “अपशिष्ट से उपयोग” जैसे विचार व्यवहार में उतारे जा सकते हैं। इस अभियान से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता, पर्यावरणीय चेतना और जनसहभागिता को बल मिला है। विशेष रूप से महिलाओं और युवाओं को इससे जोड़ते हुए इसे एक सामुदायिक आंदोलन का स्वरूप दिया गया है।
समिति की अध्यक्ष दीपा देवी ने कहा, “हमारा प्रयास सिर्फ प्लास्टिक का निस्तारण नहीं, बल्कि एक सोच को जन्म देना है ताकि अपशिष्ट भी उपयोगी बन सकता है। ईको ब्रिक्स तकनीक से हम न केवल पर्यावरण को सुरक्षित कर रहे हैं, बल्कि ग्रामीण समाज को भी जागरूक, जिम्मेदार और स्वावलंबी बना रहे हैं। आने वाले समय में हम इस मॉडल को और अधिक गांवों तक ले जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
जिलाधिकारी ने समिति से आग्रह किया कि वह अपने अनुभवों और मॉडलों को दस्तावेजीकृत करें, ताकि अन्य सामाजिक संगठनों, पंचायतों व शिक्षण संस्थानों को इससे दिशा मिल सके। समिति की आगामी योजनाओं में मेधावी एवं वंचित वर्ग के विद्यार्थियों की शैक्षिक सहायता, महिलाओं को अपशिष्ट प्रबंधन एवं स्वरोजगार से जोड़ना जैसे उद्देश्य शामिल हैं।
जिलाधिकारी मनीष कुमार ने कहा, “ऐसे समर्पित सामाजिक संगठन जनपद चम्पावत की पर्यावरणीय चेतना को मजबूती प्रदान करते हैं। प्रशासन और समाज के साझा प्रयासों से चम्पावत को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील, नवाचार-प्रेरित क्षेत्र के रूप में विकसित किया जा सकता है।”