टनकपुर के सैलानीगोठ नयी बस्ती में पहली बार हरतालिका तीज पर्व का किया जा रहा है आयोजन, शुक्रवार को महिलाये रखेंगी निर्जला ब्रत।

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टनकपुर के सैलानीगोठ नयी बस्ती में पहली बार हरतालिका तीज पर्व का किया जा रहा है आयोजन, शुक्रवार को महिलाये रखेंगी निर्जला ब्रत

टनकपुर (चम्पावत)। हरतालिका तीज पर्व का पहली बार ग्राम पंचायत सैलानीगोठ में ग्राम प्रधान रमिला आर्या की अध्यक्षता एवं कविता थापा के नेतृत्व में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है, बुधवार को महिलाओं नें पारम्परिक रीति रिवाजो के साथ पर्व का शुभारम्भ किया। शुक्रवार को सुहागिन महिलाये अपने पति की दीर्घायु के लिए निर्जला उपवास रखेंगी।

यह त्यौहार माता पार्वती और भगवान शिव के पुनर्मिलन का स्मरण कराता है। पौराणिक कहानियों के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने के लिए गंगा नदी के तट पर कठिन तप किया था। लेकिन उनके पिता हिमालय ने उनका विवाह विष्णु जी से करने का निर्णय बना लिया।

इस साल हरतालिका तीज का पावन पर्व 6 सितंबर, शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी दांपत्य जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। कई जगह विवाह योग्य युवतियां भी मनवांछित वर की कामना करते हुए हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं।

हरतालिका तीज का व्रत बेहद कठिन होता है। इसे उत्तर भारत के कई हिस्सों में खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में मनाया जाता है। यह शुभ पर्व शिव जी और माता पार्वती के बीच भक्ति और प्रेम को समर्पित है। इस व्रत में तीज माता (माता पार्वती) और शिव जी की पूजा की जाती है। महिलाओं को इनके आशीर्वाद से अखंड सौभाग्य प्राप्त होता है।

आइए आज हम आपको बताते हैं कि आखिर हरतालिका तीज क्या है?इसकी शुरुआत कैसे हुई और इस व्रत का नाम हरतालिका तीज कैसे पड़ा।हरतालिका तीज का व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है। यह पर्व पति की लंबी आयु और सुखी दांपत्य जीवन के लिए मनाया जाता है। हरतालिका दो शब्दों से मिलकर बना है हरत और आलिका। हरत का अर्थ है हरण और आलिका मतलब का है सखी। यानी ‘सखियों द्वारा हरण’ वहीं ‘तीज’ तृतीया तिथि को कहा गया है।

हरतालिका तीज का नाम कैसे पड़ा?

माता पार्वती के पिता उनका विवाह भगवान विष्णु जी के साथ करवाना चाहते थे, जबकि माता पार्वती अपने पति के रूप में भगवान शिव को चाहती थीं। तब उनकी सखियों ने माता पार्वती का हरण कर जंगल में छिपा दिया, जहां सैकड़ों वर्षों तक कठोर जप और तप करने के बाद माता पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न किया और पति स्वरूप में उनको प्राप्त किया।

क्या है हरतालिका तीज का इतिहास?

हरतालिका तीज का इतिहास पौराणिक कथाओं में निहित है।यह त्यौहार माता पार्वती और भगवान शिव के पुनर्मिलन का स्मरण करता है। पौराणिक कहानियों के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने के लिए गंगा नदी के तट पर कठिन तप किया था। लेकिन उनके पिता हिमालय ने उनका विवाह विष्णु जी से करने का निर्णय बना लिया। ऐसे में देवी पार्वती ने अपनी पीड़ा सहेलियों से कही। इस पर सहेलियों ने उनका साथ देने के लिए उनका अपहरण कर लिया और पार्वती जी को घने जंगल में छिपा दिया।इसके बाद माता पार्वती ने तब तक उस घने जंगल में अपनी साधना की, जब तक कि भगवान शिव को देवी की प्रतिबद्धता के बारे में पता नहीं चला और वह माता पार्वती से विवाह के लिए सहमत नहीं हो गए। उस समय से ही हरतालिका तीज का त्योहार मनाया जाने लगा।

इस दौरान ग्राम प्रधान रमिला आर्या, कविता थापा,प्रभा सिंह, पार्वती देवी, अनीता नेगी,मधु देवी, रेखा तिवारी, भागीरथी देवी, लक्ष्मी देवी,दीपा सिंह,ईशु सिंह, पूजा देवी, कविता नाथ,मनू नाथ, ज्योति देवी, उर्मिला तिवारी,कमला देवी सहित तमाम महिलाएं मौजूद रही।

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