24 वर्ष का उत्तराखंड राज्य क्या अभी तक छोटे राज्य की परिकल्पनाओ को कर सका हैं साकार, राज्य निर्माण के सपने क्या वास्तव में हुए हैं पूरे, एक बड़ा सवाल
लेखक – डॉ देवी दत्त जोशी
टनकपुर। उत्तराखंड राज्य बने २४ वर्ष हो गये, परन्तु जिस उद्देश्य को लेकर छोटे राज्य की कल्पना की गयी थी, उस पर अभी तक विचार ही नहीं किया गया। छोटा राज्य सुखी राज्य ऐसा भाव था, परन्तु अब लगता है सुखी राज्य वह हो सकता है जहां व्यवस्था ठीक हो। अतः सुखी राज्य के लिये व्यवस्था परिवर्तन होना चाहिए। जो आन्दोलनकारी आज भी अपनी सुविधा और पेंशन के लिये संघर्ष कर रहे हैं क्या उन्हें लगता है कि राज्य बनने से विकास हो गया?
जहां तक आन्दोलनकारियों की बात आती है कौन थे आन्दोलनकारी ? कांग्रेस और जनता दल के लोग तो राज्य के पक्ष में नहीं थे उस समय के मुख्यमंत्री तिवारी जी ने तो राज्य का समर्थन नहीं किया था। जनता दल की सरकार ने आन्दोलनकारियों पर गोली चलाई थी क्या यह सच नहीं ? यदि ये लोग राज्य के पक्ष में होते तो आन्दोलन की आवश्यकता ही नहीं होती। आन्दोलन कारी या तो उत्तराखंड क्रांति दल के अथवा भाजपा के लोग या आम जन हो सकते हैं। यदि आन्दोलन किया गया तो राज्य विकास के लिए किया गया था या अपनी सुविधा और पेंशन पाने के लिए किया गया था ?
आज विचार का विषय तो यह होना चाहिए कि जब आज भी पलायन हो रहा है तो क्यों? राज्य बनने के पश्चात भी पलायन हो रहा है और हम इसकी चिंता न कर अपने को आन्दोलन कारी सिद्ध करने में लगे हैं क्यों ? पहले तो आन्दोलनकारियों का चयन गलत हो रहा है। क्या आधार बनाया गया कौन थे आन्दोलनकारी, कभी इसपर विचार किया गया ?
आज जनता से कोई पूछ रहा है क्यों पलायन कर रहे हो अब तो अपना छोटा राज्य बन गया? विचार करने का विषय है पलायन क्यों ? मेरे विचार से पलायन के तीन सबसे महत्वपूर्ण कारण हैं रोजगार शिक्षा और चिकित्सा सुविधा एक और हो सकता है यातायात की असुविधा। तिवारी जी विकास पुरुष कहलाये तराई में सिडकुल आरम्भ हुये इस कारण तो सबसे अधिक पलायन हुआ। क्या प्रत्येक जिले में एक सिडकुल नहीं हो सकता ? तब तो उस जिले में पलायन रुकने का आधार बन सकता है। क़ृषि को हानि पहुंचाने वाले वन्य पशुओं को कैसे वनों में रोका जाय यह वन विभाग के विचार करने का विषय है। मेरे विचार से वनों में बृहद मात्रा में ऐसे फलों और पौधों का बड़ी मात्रा में रोपित करने की आवश्यकता है जो पशुओं का चारा बन सके। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां छोटे स्वास्थ्य केंद्र हैं, उनमें कुछ ऐसे प्रशिक्षित एक्यूप्रेशर और न्यूरोथैरेपी के थेरेपिष्ट जो युवा हों, की नियुक्ति की जाय। जिन्हें कुछ मान देय दिया जाय जो सुबह से दोपहर तक सेवा दें और सांय से अपने घर पर अथवा कहीं भी अपनी सेवा दें जो उनकी आय का अच्छा साधन बने। इसी प्रकार ग्रामीण पाठशालाओं में ग्रामीण शिक्षित युवा को अवसर दिया जाय बाहर के शिक्षितों की नियुक्ति न हो, यह कारण बन सकते हैं पलायन रोकने के। पलायन रोकने के लिए अनिवार्य रूप से सभी मंत्रियों सांसदों विधायकों प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों को अपने ग्रामीण क्षेत्र में अपने आवास बनाकर कम से वर्ष में तीन चार बार वहां जायें। इस प्रकार उस क्षेत्र का विकास भी होगा और पलायन भी रुकेगा। भाषणों से और जनता से पलायन रोकने की बात करना और स्वयं पलायन करने वालों की बात का कोई प्रभाव नहीं होगा।
प्रत्येक जिले में कम से कम एक कृषि इन्टर कालेज के साथ गौशालाओं का निर्माण हो जहां जैविक खेती के लाभ और देशी गौमाता के पालन से लाभ का शिक्षण हो। जिस क्षेत्र में जो भी फल फूल साग आदि वनस्पति होती हो उन से संबंधित लघु उद्योग स्थापित करने की योजना बने शराब न बनायी जाय जूस बने। नेपाल से लगी सीमा में एक कल्पवृक्ष है च्यूरा जो अनेक लघु उद्योग स्थापित करने की क्षमता रखता है। शहद वनस्पति घी और कुछ ऐसे रसायनों का स्रोत है जिसे विदेश से आयात किया जाता है। प्रदेश का बहुत बड़ा आर्थिक स्रोत बन सकता है। उसकी आज तक क्यों उपेक्षा हुई समझ से बाहर है ? ऐसे ही किरमोड़ा हेंसालू घिघारू और सिसोंण ऐसे पौधे हैं जो पहाड़ के भूस्खलन को रोक सकते हैं, और आय का साधन बन सकते हैं। ऐसे पूरे पहाड़ में न जाने कितनी वनस्पतियां हैं जिनका उपयोग रोजगार के लिये उपयोगी हो सकता है आवश्यकता मात्र इच्छा शक्ति की है।
हमारे प्रदेश में एक फूलों की घाटी है, हम कृत्रिम झील बना सकते हैं, तो क्या कृत्रिम फूलों की घाटी नहीं बन सकती। इसमें तो कुछ स्थानीय फूलों के बीज छिड़कने की है और कुछ ऐसे फूलों के पौधे होते हैं जिसके डंठलों को यदि हरेले के दिन रोपित कर दिया जाय तो अपने आप विकसित हो सकता है। यदि हम इसपर विचार करें तो उत्तराखंड का प्रत्येक क्षेत्र पर्यटन स्थल बन सकता है। धार्मिक स्थलों को पर्यटन का क्षेत्र न बनायें और ऐसे स्थानों में शराब व नशे को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित करें। पर्यटन क्षेत्र और धार्मिक क्षेत्रों के विकास में कुछ मान मर्यादा का अन्तर झलकना चाहिए। प्रदेश में जिस प्रकार से खनन उद्योग विकसित हो रहा है वह पहाड़ के भविष्य के लिए बड़ा प्रश्न चिन्ह बन कर उभरेगा। खनन उद्योग के स्थान पर जड़ी-बूटी उगाने को प्रोत्साहित किया जाए नन्धोर जैसे क्षेत्रों में खनन उद्योग वालों को प्रोत्साहित कर अपने वाहनों को पर्यटकों को आकर्षित करने में उपयोग करें। उत्तराखंड का विकास यहां के भौगौलिक और वनस्पति को आधार मान कर ही सम्भव है जिसपर विचार क्यों नहीं हो रहा?
साभार – डा देवी दत्त जोशी टनकपुर चम्पावत।