लोहाघाट की लोहावती नदी सामूहिक प्रयास से ही बचाई जा सकती है- शशांक पाण्डेय।
लोहाघाट (चम्पावत)।लोहावती नदी उत्तराखंड राज्य के चंपावत जिले में स्थित लोहाघाट के पास बहने वाली एक पवित्र नदी है। यह नदी क्षेत्र की अलग अलग जल धाराओं से मिलकर बनती है। लोहाघाट पहुंचने से पहले, कई अन्य नाले इसमें मिलकर इसके आकार को बढ़ा देते हैं, लेकिन लोहाघाट शहर में पहुँचते ही यह किसी नाले के समान लगती है।लोहावती नदी, उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित, न केवल एक प्राकृतिक धरोहर है, बल्कि स्थानीय समुदाय के लिए जीवनरेखा भी है। हालांकि, समय के साथ इसमें प्रदूषण और अतिक्रमण की समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं, जिससे इसकी पारिस्थितिकी और उपयोगिता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इस नदी में प्रदूषण के प्रमुख कारण घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट है। नदी में बिना उपचारित घरेलू अपशिष्ट का प्रवाह जल की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है। तो वही प्लास्टिक और ठोस कचरा भी इसके प्रवाह को रोक रहा है। स्थानीय निवासियों और पर्यटकों द्वारा नदी में प्लास्टिक और अन्य ठोस कचरे का फेंकना प्रदूषण को बढ़ाता है।
इसके साथ ही अवैध अतिक्रमण, नदी के किनारों पर अवैध निर्माण और अतिक्रमण से जल प्रवाह में बाधा उत्पन्न हो रही है। लोहावती नदी सबके सामूहिक प्रयास से ही बचाई जा सकती ही। इसमें पहला कार्य सीवेज उपचार संयंत्रों की स्थापना हो सकता है। नदी में अपशिष्ट जल के प्रवाह को रोकने के लिए सीवेज उपचार संयंत्रों की स्थापना आवश्यक है।साथ ही ठोस कचरा प्रबंधन भी अब समय की माँग है।स्थानीय निकायों को ठोस कचरे के संग्रहण और निपटान के लिए प्रभावी प्रणाली विकसित करनी होगी। साथ ही जन जागरूकता अभियान भी स्थानीय समुदाय को नदी की सफाई और संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूक करना आवश्यक है। इसके साथ पुनर्वनीकरण और वृक्षारोपण से भी नदी को दूसरा जीवन मिल सकता है। नदी के किनारों पर वृक्षारोपण और हरित क्षेत्र का विकास जल संरक्षण में सहायक होगा।
नदी की सफाई और संरक्षण में स्थानीय समुदाय की सहभागिता अत्यंत महत्वपूर्ण है। स्थानीय स्वयंसेवी संगठनों, स्कूलों और नागरिकों को मिलकर सफाई अभियानों में भाग लेना चाहिए। इसके अलावा, स्थानीय प्रशासन को भी इन प्रयासों का समर्थन और समन्वय करना चाहिए। लोहावती नदी की सफाई और पुनर्जीवन के लिए एक समग्र और समन्वित प्रयास की आवश्यकता है। यदि सभी संबंधित पक्ष स्थानीय प्रशासन, समुदाय, और पर्यावरणीय संगठन मिलकर कार्य करें, तो यह नदी पुनः अपनी पुरानी गरिमा प्राप्त कर सकती है।
(लेखक पर्यावरण प्रेमी हैं )