जिला योजना को नया लुक एवं जनोपयोगी बनाने के लिए उन लोगों से संवाद तो किया ही जाना चाहिए जिनके लिए बनाई जा रही है यह योजना।
➡️ जिलाधिकारी ने कई शिकारी विभागों से बंदूक छीनकर उनके मंसूबो में फेरा पानी.
चंपावत। कई विभागों के लिए सालाना लॉटरी बनी जिला योजना के प्रस्तावित कार्यों को रखने से पूर्व ही ऐसे विभागों के मंसूबों में जिलाधिकारी द्वारा पानी फेर दिया गया है। दरअसल जिले में लगभग एक दर्जन ऐसे विभाग हैं जिन्होंने जिला योजना को ऐसी कामधेनु बना दिया था कि उन्हें लॉटरी की तरह अतिरिक्त लाभ मिलना तय होता था। ऐसी सोच के सामने जिला योजना की करोड़ों रुपए की धनराशि इन्हीं विभागों में लिपट जाती थी और नवाचार, रोजगार, पशुपालन, कृषि, बागवानी जैसे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने वाले तथा रोज़गारपरत मुद्दे हाशिये में चले जाते थे। जिले को योजना के तहत मिलने वाली धनराशि में होने वाली लीकेज को यदि रोका जाए तो यह धनराशि किसानों के चेहरों में मुस्कान ला सकती है। इंटीग्रेटेड, वर्टिकल फार्मिंग को बढ़ावा मिलना चाहिए। जिले में सर्वाधिक दूध का उत्पादन होता है, लेकिन पशुपालकों के पास अच्छे गोठ (गौशाला) नहीं है। उनके लिए पौष्टिक चारे व संतुलित आहार की भी जरूरत है। गायों में होने वाले तमाम रोगों का यदि उपचार कर उन्हें दुधारू बना दिया जाए तो किसान उन्हें छोड़ने के बजाय गोठ (गौशाला) में ही रखेगा। मौनपालन ऐसा व्यवसाय है, जो कुटीर उद्योग के रूप में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई जान दे सकता है। जिले में तमाम ऐसे कार्य हैं जो धनाभाव के कारण आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। जिला प्रशासन द्वारा जिला योजना के प्रस्ताव विभागों से तो मांगे जाते हैं, लेकिन उन लोगों से सीधा संवाद नहीं किया जाता है जिनके लिए यह योजनाये बन रही है। लघु सिंचाई विभाग का सीधा ताल्लुक किसानों से होता है, लेकिन वहां योजना के प्रस्ताव ठेकेदार लेकर आते हैं, हालांकि यह इतना कुनैल की तरह कड़वा सच है. जिसे खाने पर मलेरिया शांत हो जाता है। जिला प्रशासन यदि सीधे लोगों से संवाद करेगा तो नए आइडिया मिलेंगे जो जिले को नया आयाम दे सकते हैं। जिला योजना का स्वरूप बदलने के लिए यह जरूरी है कि प्रस्तावित योजनाओं का स्थल देखा जाए कि क्या वास्तव में इसमें व्यापक जनहित निहित है। हालांकि जिले के कई विभागों में नए चेहरे आए हुए हैं, लेकिन पुराने खिलाड़ियों से पार पाना इतना आसान भी नहीं होगा, जिसके लिए संकल्प शक्ति की आवश्यकता होगी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के मॉडल जिले में विकास के नाम पर खूब रेल-पेल हो रही है। कुछ विभागों के लिए तो यह स्थिति बनी हुई है जैसे चील के घोसले में रखे मांस के टुकडे की होती है। ऐसी स्थिति का स्वयं अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
(गणेश दत्त पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार)