सावन के पवित्र महीने में भोले के भक्त निकालते हैं कावड़ यात्रा, चार तरह की होती है कावड़ जिनके कड़े नियमों का कावड़ियों को करना पड़ता हैं पालन ।

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सावन के पवित्र महीने में भोले के भक्त निकालते हैं कावड़ यात्रा, चार तरह की होती है कावड़ जिनके कड़े नियमों का कावड़ियों को करना पड़ता हैं पालन

टनकपुर (चम्पावत )। आज 22 जुलाई से पवित्र सावन के महीने की शुरुआत हो गयीं हैं, संयोग ऐसा कि आज पहले सोमवार से सावन शुरू हुआ हैं l एक ओर जहाँ सावन के महीने का विशेष महत्त्व हैं, वहीं सावन के सोमवार तमाम शिव भक्तो की आस्था का केंद्र हैं। सावन की शुरुआत के साथ ही केसरिया रंग में रंगे कावड़िये शिव शंकर का जयकारा लगाते हुए कावड़ लेकर महादेव को जलाभिषेक के लिए निकल पड़ते हैं।

उल्लेखनीय हैं कि कांवड़ मुख्यतः चार प्रकार की मानी जाती हैं, सबका अपना अपना महत्व हैं, लेकिन नियम सबके कठोर हैं, जिनका कावड़ियों को पालन करना अनिवार्य होता हैं।

मुख्यतः सामान्य कांवड़, डाक कांवड़, खड़ी कांवड़ और बैठी कांवड़ यात्रा के पश्चात् कावड़ियों द्वारा देवों के देव महादेव का जलाभिषेक किया जाता हैं।

कावड़ बांस या लकड़ी से बना डंडा होता है जिसे रंग बिरंगी पट्टी से सजाया जाता है। इसके दोनों तरफ एक-एक टोकरी होती है। जिसमें गंगा जल रखने का पात्र होता है। इसे कावड़िये अपने कंधे पर लटका कर गंगा जल भरकर अपने नजदीकी प्रतिष्ठित शिवालय में शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं।

कावड़ यात्रा शुरू किये जाने वाले दिन सबसे पहले शिव के भक्त शिव से मन्नत मांगते हैं। तत्पश्चात सुबह लगभग तीन से चार बजे के बीच कांवड़ लेकर घर से निकलते हैं। नियमानुसार कांवड़ का जलपात्र टेढ़ा मेढ़ा या टूटा नहीं होना चाहिए।

घर से निकलने के बाद वो सबसे पास की पवित्र गंगा नदी (हमारे यहाँ शारदा नदी ) से गंगा जल कांवड़ में भरकर निराहार अपनी यात्रा शुरू करते हैं और अपने आस पास के प्रतिष्ठित शिवालय में जाकर गंगा जल से भगवान् भोले नाथ का जलाभिषेक करते हैं। गंगाजल भरने से पहले कावड़िये व्रत रखते हैं। नियम ये भी है की गंगाजल लेने के बाद कांवड़ को जमीन पर नहीं रखा जाता। शिवलिंग का जलाभिषेक करने के बाद कावड़ यात्रा सम्पूर्ण मानी जाती हैं। कांवड़ यात्रा के बारे में बताया जाता हैं कि सूर्योदय से लगभग दो घंटे पहले यात्रा की शुरुआत और सूर्यास्त से दो घंटे बाद तक ही यात्रा की जा सकती हैं।

कावड़ियों के लिए किसी दूसरे व्यक्ति के हाथ का खाने पीने से परहेज किये जाने, यात्रा में किसी पर गुस्सा लड़ाई झगड़ा नहीं करने, अत्यधिक बात नहीं करने, कांवड़ ले जाते समय किसी को स्पर्श नहीं करने, ज़मीन पर कपड़ा बिछा कर सोनें, नशे से दूर रहने, प्रतिदिन नहाकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने, साथियों का नाम न लेने उन्हें भोले के नाम से सम्बोधित किये जाने के नियमों का कावड़ियों को पालन करना अनिवार्य बताया जाता हैं। इसके अलावा सामान्य कांवड़ को कहीं भी रोककर कांवड़िये रुक कर खा पी सकते हैं, डाक कांवड़ नॉन स्टॉप कांवड़ यात्रा हैं, जिसे कई लोग मिलकर पूरा करते हैं।जिसमें गंगा जल कांवड़ में भरनें कें बाद उसी दिन जलाभिषेक के बाद यात्रा पूर्ण करना अनिवार्य बताया जाता है। खड़ी कांवड़ दो चार भक्त मिलकर अलग कंधो में रखकर दिन रात चलकर यात्रा पूरी करते हैं। बैठकी कावड़ जिसे झूला कांवड़ भी कहा जाता है। इसे अक्सर एक ही व्यक्ति लेकर चलता है। रात के वक्त किसी पेड़ या तने के सहारे ये कांवड़ टांग दिया जाता है। कावड़ पेड़ या तने में टांगने के बाद और कंधे में रखने से पहले भोलेबाबा से कान पकड़कर उठक बैठक कर माफ़ी माँगने का नियम हैं।

फिलहाल आज से सावन का महीना शुरू हो गया हैं अब तमाम भक्त तरह तरह की कावड़ लेकर माहौल को शिवमय बनाने में लगे हैं। वहीं डीजे की धुन पर नाचते गाते और महादेव के जयकारों से समूचा क्षेत्र भक्ति भाव से ओत प्रोत होनें लगा है। टनकपुर से लेकर चकरपुर के वनखंडी महादेव मंदिर में जलाभिषेक की तैयारिया यहाँ जोरों पर जारी हैं।

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