करवाचौथ पर विशेष – आज भी भारत वर्ष के कुछ क्षेत्रो में करवाचौथ मनाने से डरती हैं सुहागिनें, आखिर क्या वजह हैं जो इन जगहों पर नहीं मनाया जाता हैं करवाचौथ, और रहता हैं अंधेरा, देखिये विशेष रिपोर्ट ➡️

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करवाचौथ पर विशेष – आज भी भारत वर्ष के कुछ क्षेत्रो में करवाचौथ मनाने से डरती हैं सुहागिनें, आखिर क्या वजह हैं जो इन जगहों पर नहीं मनाया जाता हैं करवाचौथ, और रहता हैं अंधेरा, देखिये विशेष रिपोर्ट ➡️

चम्पावत। विधवा हुई नई दुल्हन के श्राप के खौफ से मथुरा के एक मोहल्ले और हरियाणा के तीन गावों में आज भी करवाचौथ पर न चांद की पूजा होती है और न ही सुहागिनें सोलह श्रृंगार करती हैं, अंधकार के साये में रहकर वो सदा सुहागिन रहने की प्रार्थना करती हैं –

मथुरा – आज देश भर में करवा चौथ का त्योहार मनाया जा रहा है, इस दिन हिंदू विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन हर महिला की चाहत होती है कि वो खूब अच्छे से सोलह श्रृंगार करें और सबसे सुंदर नजर आए लेकिन उत्तर प्रदेश के मथुरा में एक मोहल्ला ऐसा भी है जहां इस दिन अधिक अंधेरा रहता है. यानी कि यहां कोई महिला करवाचौथ नहीं करती और न हीं श्रृंगार और पूजा करती है. इसके पीछे की कहानी हैरान करनी वाली है।

नई नवेली दुल्हन के सामने हुई पति की हत्या सती होने से पहले दिया श्राप-

कहा जाता है कि बात सैकड़ों वर्ष पुरानी है जब नौहझील के गांव रामनगला का एक ब्राह्मण युवक यमुना के पार स्थित ससुराल से अपनी नवविवाहिता पत्नी को विदा कराकर ला रहा था। वह सुरीर के रास्ते भैंसा बुग्गी से लौट रहा था। तभी रास्ते में सुरीर के कुछ लोगों ने बुग्गी में चल कर आ रहे भैंसे को अपना बता कर विवाद शुरू कर दिया. इस विवाद में सुरीर के लोगों के हाथों गांव रामनगला के इस ब्राह्मण युवक की हत्या हो गयी।

अपने ही सामने पति की मौत से कुपित नई दुल्हन ने इस मुहल्ले के लोगों श्राप देते हुए कहा कि जैसे में अपने पति के शव के साथ सती हो रही हूं, उसी तरह इस मोहल्ले की कोई भी महिला अपने पति के सामने सज धज कर सोलह श्रृंगार करके नहीं रह सकती. इसे सती का श्राप कहें कि पति की मौत से बिलखती पत्नी के कोप का कहर. ये घटना मोहल्ले पर काल बन कर टूटी और जवान युवकों की मौत होने लगी. तमाम विवाहितायें विधवा हो गयीं और मोहल्ले पर मानो आफत की बरसात सी होने लगी. उस समय बुजर्गों ने इसे सती के कोप का असर माना और उस सती का मन्दिर बनवाकर क्षमा याचना की।

श्राप से मुक्ति की पहल को नहीं तैयार हों पा रही कोई भी महिला-

कहते हैं मोहल्ले की एक बुजुर्ग महिला सुनहरी देवी ने सती मां की जानकारी के बारे में बताती हैं कि सती की पूजा अर्चना करने के बाद अस्वाभाविक मौतों का सिलसिला तो थम गया, लेकिन महिलाएं यहां सुहाग सलामती के लिए करवाचौथ का व्रत नहीं रखतीं और न ही हम अपनी बेटियों को करवा चौथ पर कोई भेंट देते हैं। तभी से इस मोहल्ले के सैकड़ों परिवारों में कोई विवाहिता न तो सजधजकर श्रृंगार करती है और न ही पति के दीर्घायु को करवा चौथ का व्रत रखती है. सैकड़ों वर्ष से चली आ रही इस परम्परा का पीढ़ी दर पीढ़ी निर्वहन होता चला आ रहा हैं। इस श्राप से मुक्ति की पहल करने के लिए कोई विवाहिता तैयार नहीं होती है। पहले से चली आ रही इस परम्परा को तोड़ने में सभी को सती के श्राप के भय से उन्हें अनिष्ट की आशंका सताती है।

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हरियाणा के तीन गावों में भी नहीं मनाई जाती हैं करवाचौथ-

हरियाणा के कुछ गांव ऐसे हैं जहां करवा चौथ का व्रत नहीं रखा जाता ? बल्कि यह माना जाता है कि यदि कोई सुहागिन इस दिन व्रत रखे तो उसका सुहाग नष्ट हो जाता है।

हरियाणा के करनाल जिले के तीन गांव कतलाहेड़ी, गोंदर और औंगद (ओगन्ध) इस रहस्य से जुड़े हुए हैं। इन गांवों में सदियों से करवा चौथ का पर्व नहीं मनाया जाता। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, इन गांवों की स्त्रियां यदि यह व्रत रख लें तो वे विधवा हो जाती हैं। यही कारण है कि यहां करवा चौथ को शोक का दिन माना जाता है। हालांकि, यदि इन गांवों की बेटियां शादी के बाद किसी दूसरे गांव में जाती हैं, तो वे वहां यह व्रत रख सकती हैं। उनका सुहाग सुरक्षित रहता है।क्योंकि श्राप केवल इन गांवों की धरती तक सीमित माना जाता है।

स्थानीय किवदंतियों के अनुसार, लगभग 600 वर्ष पहले राहड़ा गांव की एक युवती का विवाह ओगन्ध गांव के एक युवक से हुआ था। करवा चौथ से एक दिन पहले उस लड़की ने सपना देखा कि उसका पति मक्के की गठरियों में छिपाकर मारा गया है। उसने यह बात अपने मायके वालों को बताई, जो करवा चौथ के दिन ओगन्ध पहुंचे। जब उन्होंने बताया हुआ स्थान खोदा, तो वहां वास्तव में उसके पति का शव मिला। उस दिन वह महिला करवा चौथ का व्रत रखे हुए थी। उसने अपने करवे को गांव की महिलाओं को देने की कोशिश की, लेकिन किसी ने स्वीकार नहीं किया। शोकाकुल होकर वह अपने पति के साथ करवा सहित सती हो गई और मरने से पहले श्राप दिया, “जिसने इस भूमि पर करवा चौथ का व्रत रखा, उसका सुहाग नष्ट हो जाएगा।” तब से आज तक इन गांवों में कोई भी सुहागिन यह व्रत नहीं रखती।ओगन्ध गांव में आज भी उस महिला का सती मंदिर मौजूद है। करवा चौथ के दिन गांव की महिलाएं वहां जाकर मत्था टेकती हैं पर व्रत नहीं रखतीं। वहीं, कतलाहेड़ी और गोंदर गांवों में भी यही परंपरा आज तक जारी है। यह घटनाएं भारतीय परंपराओं की गहराई, श्रद्धा और लोककथाओं की रहस्यमयी दुनिया को दर्शाती है, जहां आस्था और इतिहास एक साथ चलते हैं।

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